मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय, हॉकी के जादूगर, उम्र , परिवार, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार, विवाह, मृत्यु ,पत्नी ,बेटे, ध्यान चंद स्टेडियम [ Major Dhyanchand Biography in Hindi ] (Hockey Wizard, Major Dhyan Chand Khel Ratna Award, Marriage, Age, Caste, Death, Family, Wife, Son, Dhyan Chand Stadium )
मेजर ध्यानचंद भारत के भूतपूर्व हॉकी खिलाड़ी व कप्तान थे। प्यार से लोग इन्हे दद्दा भी कहते थे और इनका प्रसिद्ध नाम ” हॉकी का जादूगर ” था। मेजर ध्यानचंद की बॉल में अच्छी पकड़ होने से उन्हें दी विजार्ड कहा जाता था। इन्होंने 3 बार अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया ,इसलिए इन्हें भारत में ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भी प्रसिद्धि मिली। इन्होंने 1928 से 1936 तक लगातार गोल्ड मेडल जीता और हैट्रिक बनाई।
इनके खेल से प्रभावित होकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने भी इन्हें जर्मनी की नागरिकता ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया ,लेकिन बड़े ही सहज भाषा में इन्होंने मना कर दिया। इन्होंने 1949 में हॉकी से संयास ले लिया था। इनका निधन 3 दिसंबर 1979 को दिल्ली में लीवर कैंसर होने से हो गया था। इनके जन्म दिवस 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह भारत और विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनके इन्हें श्रद्धांजलि देते हुए राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार को बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार नाम रख दिया।
मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय :
नाम (Name) | मेजर ध्यानचंद सिंह |
अन्य नाम (Other Name) | दद्दा ,हॉकी विजार्ड , चाँद , हॉकी के जादूगर |
जन्म (Birth) | 29 अगस्त 1905 |
जन्म स्थान (Birth Place) | प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश ) |
गृहनगर (Hometown) | झांसी (उत्तर प्रदेश) |
पिता (Father’s Name) | सूबेदार समेश्वर दत्त सिंह |
माता (Mother’s name) | शारदा सिंह |
पत्नी (Wife) | जानकी देवी |
विवाह (marriage) | 1936 |
भाई (Brother) | हवलदार मूल सिंह , रूप सिंह ( हॉकी खिलाड़ी ) |
बेटे (Son) | बृजमोहन सिंह , सोहन सिंह ,राजकुमार , अशोक कुमार ,उमेश कुमार , देवेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह |
पेशा (Profession) | भारतीय हॉकी खिलाड़ी |
खेल पोजीशन | फॉरवर्ड |
हॉकी में अंतरराष्ट्रीय डेब्यू | 1926 मैं न्यूजीलैंड के खिलाफ |
कोच (Coach) | सूबेदार मेजर भूले और तिवारी पंकज गुप्ता |
हॉकी से सन्यास | 1949 |
सेना का नाम | ब्रिटिश इंडियन आर्मी |
यूनिट का नाम | पंजाब रेजीमेंट |
जाति (Caste) | राजपूत |
धर्म (Religion) | हिंदू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पुरस्कार (Awards) | पद्मभूषण ( 1956 ) |
निधन (Death) | 3 दिसंबर 1979 DELHI ( लीवर कैंसर के कारण ) |
जन्म व परिवार :
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद जो वर्तमान में प्रयागराज है, उत्तर प्रदेश राज्य में एक राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सूबेदार समेश्वरदत्त सिंह था। इनके पिता आर्मी में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे और वह भी हॉकी खेला करते थे। इनकी माता का नाम शारदा सिंह और पत्नी का नाम जानकी देवी था। इनका विवाह 1936 में हुआ था। इनके भाई का नाम हवलदार मूल सिंह एवं रूप सिंह था। इनके भाई रूप सिंह भी हॉकी के प्लेयर थे। इनके बेटो का नाम बृजमोहन सिंह ,सोहन सिंह, राजकुमार सिंह ,अशोक कुमार सिंह ,उमेश कुमार सिंह, देवेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह था। इन्हें फुटबॉल में खिलाड़ी पेले और क्रिकेट में खिलाड़ी ब्रैडमैन के बराबर माना जाता है।
प्रारंभिक शिक्षा :
मेजर ध्यानचंद के पिता आर्मी में कार्यरत थे इसलिए उनका ट्रांसफर होते रहता था और इसी कारण मेजर ध्यानचंद ने आठवीं के बाद की पढ़ाई छोड़ दी। यह अपने पिता के साथ एक बार आर्मी कैंप में हॉकी का मैच देखने गए थे ,वहां टीम 3 गोल से हारने वाली थी ,यह देखकर मेजर ध्यान चंद्र अपने पिता से बोले क्या मैं हारने वाली टीम के लिए खेल सकता हूं ,तो पिता ने उन्हें इजाजत दे दी और उन्होंने उस टीम को जिता दिया। इनका प्रदर्शन देखते हुए अफसर लोग भी इनसे खुश हो गए और इन्हें आर्मी जॉइन करने के लिए कहा। इसके बाद 16 वर्ष में ही 1922 में यह पंजाब रेजिमेंट में सिपाही बन गए और यहीं से हॉकी खेलने का सफर शुरू हुआ।
ध्यानचंद का हॉकी करियर :
ध्यानचंद 1922 में आर्मी में भर्ती हो गए थे और वही इन्हें हॉकी खेलने के लिए रेजीमेंट के सूबेदार मेजर भोले तिवारी ने प्रेरित किया ,मेजर भी हॉकी के खिलाड़ी थे और ब्राह्मण रेजिमेंट से थे। इन्हीं से इन्होंने हॉकी सीखी और यह विश्व स्तर के हॉकी के महान जादूगर बन गए। इन्होंने अंतरराष्ट्रीय मैचों में 400 से अधिक गोल किए। मेजर ध्यानचंद ने 1922 से 1926 तक सेना की ही प्रतियोगिता में हॉकी खेली। 1949 में इन्होंने हॉकी से संयास ले लिया था। इनके हॉकी खेल में अच्छे प्रदर्शन के लिए इन्हें सेना में पदोन्नति मिली।
सेना में पदोन्नति :
वर्ष | पद |
1927 | लांस नायक |
1932 | नायक |
1937 | सूबेदार ( हॉकी के कप्तान ) |
1938 | वायसराय |
1943 | लेफ्टिनेंट ( द्वितीय विश्व युद्ध ) |
1948 | कप्तान और बाद में मेजर ( स्वतंत्रता के समय ) |
मेजर ध्यानचंद ने 1925 में अपना पहला नेशनल हॉकी टूर्नामेंट खेला ,उसके बाद उनका सलेक्शन भारत की इंटरनेशनल हॉकी टीम में हो गया और तभी से उन्होंने अपनी मेहनत , लगन और कठिन परिश्रम से भारत को गोल्ड मेडल जीताए।
इन्होंने पहला मैच 13 मई 1926 को न्यूजीलैंड के खिलाफ खेला था। जिसमें 21 मैच खेले गए और 18 मैच भारत ने जीते एक मैच हार गए और दो मैच अनिर्णीत रहे।
उसके बाद 27 मई 1932 को श्रीलंका में 2 मैच खेले पहले मैच में 21 – 0 और दूसरे मैच में 10 – 0 से जीत हासिल की।
इन्होंने भारत के लिए 1926 से 1948 तक हॉकी का मैच खेला।
1928 एम्सटर्डम ओलंपिक मैं ध्यानचंद का प्रदर्शन :
1928 के ओलंपिक आयोजन में पहली बार भारतीय हॉकी टीम ने हॉकी में भाग लिया और फाइनल मैच में हॉलैंड को 3-0 से हराकर गोल्ड मेडल जीत लिया। फाइनल मैच में ध्यानचंद ने 3 में से 2 गोल किए और भारत को गोल्ड मैडल जिताने में अहम भूमिका ध्यानचंद ने निभाई। उन्होंने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया।
1932 लॉस एंजिल्स ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद :
1932 में हुए लॉस एंजिल्स ओलंपिक खेलों में भारत ने फिर से गोल्ड जीत लिया और फाइनल मैच में अमेरिका को 24 -1 के भारी अंतर से हरा दिया। इस हार के बाद एक अमेरिकी समाचार पत्र ने लिखा ” भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान थी उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के 11 खिलाड़ियों को कुचल दिया ” ,यहां भी मेजर ध्यानचंद ने अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया और भारत को एक बार फिर से पूरे विश्व में गौरवान्वित कर दिया।
1936 बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद :
1936 के बर्लिन ओलंपिक गेम्स में भारतीय टीम की अगुवाई मेजर ध्यानचंद ने की। इसमें भारत ने फिर से गोल्ड मेडल जीत लिया और अपनी हैट्रिक पूरी की। फाइनल मैच में भारत ने जर्मनी को 8-1 के अंतर से हरा दिया।
मेजर ध्यानचंद जब मैदान में खेलने आते थे तो उनकी गेंद स्टिक से ऐसे चिपक जाती थी कि खिलाड़ियों को लगता था कि मानो वह जादुई स्टिक से खेल रहे हो और तभी उनका नाम हॉकी का जादूगर रख दिया गया।
जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर द्वारा की गई प्रशंसा :
मेजर ध्यानचंद के खेल को भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के देशों में भी पसंद किया जाता है और जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी मेजर ध्यानचंद के खेल से बहुत प्रभावित हुए थे और ध्यानचंद को जर्मनी की नागरिकता ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया ,पर मेजर ध्यानचंद ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और भारत देश के लिए खेलने का निर्णय लिया। इन्होंने कहा कि वे भारत के लिए खेलने में बहुत ही गौरव महसूस करते हैं।
पोलैंड में उनकी स्टिक तोड़कर भी देखी गई क्योंकि उसमें चुंबक होने की आशंका होने लगी और इसके बाद जापान में भी स्टिक में गोद लगे होने की आशंका हुई लेकिन ऐसा नहीं था यह उनकी बेहतरीन प्रतिभा ही थी जो उन्हें मैचों में सफलता दिलाती थी।
वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए मूर्ति लगाई गई है। जिससे इनके बेहतरीन खेल का पता चलता है।
ध्यानचंद को प्राप्त पुरस्कार / अवार्ड/ सम्मान :
1 – मेजर ध्यानचंद को 1956 में भारत के पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।
2 – इनके बेहतरीन खेल प्रदर्शन को देखते हुए भारत सरकार ने इनके जन दिन 29 अगस्त को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इसी दिन खिलाड़ियों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरस्कार और कोच को द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।
3 – इनके सम्मान में भारत सरकार ने इनकी याद में डाक टिकट जारी किया।
4 – दिल्ली में इनके सम्मान में ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम का निर्माण कराया गया।
5 – भारतीय ओलंपिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी भी घोषित किया।
ध्यानचंद को भारत रत्न पुरस्कार :
मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न पुरस्कार देने की मांग उठ रही है। भारत रत्न को लेकर ध्यानचंद के नाम पर अभी भी विवाद चल रहा है। हम प्रार्थना करते हैं कि आने वाले समय में सरकार मेजर ध्यानचंद के सम्मान में भारत रत्न पुरस्कार अवश्य देगी।
ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार में दी जाने वाली राशि :
मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार पहली बार 1991- 92 में दिया गया। जो लोग खेलों में ध्यानचंद पुरस्कार जीतते हैं उन्हें सरकार 5 लाख की राशि पुरस्कार में देती थी। जिसे बाद में खेल मंत्री रिजीजू ने बढ़ाकर 10 लाख कर दिया गया था। प्रत्येक 10 साल में इस पुरस्कार की राशि में बदलाव खेल मंत्री द्वारा किया जाता है। वर्तमान में 25 लाख रुपए की राशि दी जाती है।
राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड रखने का कारण :
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार रख दिया।यह निर्णय पीएम मोदी ने हाल ही में भारत की टोक्यो ओलंपिक खेल में 41 साल बाद मैडम जीतने के अवसर पर किया। 1980 में मास्को ओलंपिक में हॉकी मेडल भारत ने जर्मनी को हराकर जीता था। प्रधानमंत्री का कहना है कि मेजर ध्यान चंद जी भारत के एक सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी थे, जिन्होंने भारत को सम्मान और गर्व प्राप्त कराया। भारत की जनता द्वारा की गई अपील के बाद यह कदम पीएम मोदी ने उठाया और ट्वीट करके बताया।
ध्यानचंद से संबंधित रोचक तथ्य :
1 – मेजर ध्यानचंद ने 185 मैचों में 570 गोल किए।
2 – मेजर ध्यानचंद का जन्म इलाहाबाद में हुआ था वर्तमान में इलाहाबाद को प्रयागराज का नाम दिया गया है।
3 – मेजर ध्यानचंद के नाम से पहले ही ध्यानचंद लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया जाता है।
4 – जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने अपने देश की नागरिकता ग्रहण करने का प्रस्ताव ध्यानचंद को दिया था।
5 – मेजर ध्यानचंद के नाम पर खेल रत्न अवॉर्ड का नाम रखना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है।
6 – दिल्ली के नेशनल स्टेडियम को 2002 में मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम का नाम दिया गया। यह उनके सम्मान में किया गया।
FAQ :
Q – ध्यानचंद की मृत्यु कब हुई ?
ANS – इनकी मृत्यु 3 दिसंबर 1979 को दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में लिवर कैंसर होने से हुई।
Q – मेजर ध्यानचंद को किस नाम से जाना जाता है ?
ANS – मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर, दद्दा ,हॉकी विजार्ड ,चाँद आदि नामों से जाना जाता है।
Q – ध्यानचंद को सेना में नौकरी कब मिली ?
ANS – 1922 में।
Q – ध्यानचंद के पुत्रों का नाम क्या है ?
ANS – बृजमोहन सिंह ,सोहन सिंह, राजकुमार सिंह ,अशोक कुमार सिंह ,उमेश कुमार सिंह, देवेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह है।
Q – ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है ?
ANS – मेजर ध्यानचंद जब मैदान में खेलने आते थे तो उनकी गेंद स्टिक से ऐसे चिपक जाती थी कि खिलाड़ियों को लगता था कि मानो वह जादुई स्टिक से खेल रहे हो और तभी उनका नाम हॉकी का जादूगर रख दिया गया।
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